बिछड़ ने वाले बता किस तरह निभाऊ तुझे
में याद करता रहु या कि भुल जाऊ तुझे
तू मुद्दतों में मिला है तो दिल ये केहता है
में शिकवे छोड़ के सारे गले लगाऊ तुझे
तमाम उम्र बसर हो इसी तरह अपनी
तू आज़माए मुझे और मैं आज़माऊ तुझे
तू दिल बात खमोशी से मेरी सुन लेना
अगर ज़ुबान से अपनी मैं केह न पाऊ तुझे
यूं भुलकर तो मुझे जा रहा है तू लेकिन
किसी मुक़ाम पे मुमकिन है याद आऊ तुझे
इसे विसाल कहूं या कि मैं फ़िराक कहूं
क़रीब तो है तू लेकिन मैं छु न पाऊ तुझे
सियाह ज़र्रा हू 'असलम 'ये चाँद सुरज सा
मैं जगमगा के भला किस तरह दिखाऊ तुझे
-असलम मीर