Sunday 5 January 2014

Ghazal...Nibhau Tujhe

बिछड़ ने वाले बता किस तरह निभाऊ तुझे 
में  याद करता रहु या कि भुल जाऊ तुझे 
तू  मुद्दतों में मिला है तो दिल ये केहता है 
में शिकवे छोड़ के सारे गले लगाऊ तुझे 
तमाम उम्र बसर हो इसी तरह अपनी 
तू आज़माए मुझे और मैं आज़माऊ तुझे 
तू दिल बात खमोशी से मेरी सुन लेना 
अगर ज़ुबान से अपनी मैं केह न पाऊ तुझे 
यूं भुलकर तो मुझे जा रहा है तू लेकिन 
किसी मुक़ाम पे मुमकिन है याद आऊ तुझे 
इसे विसाल कहूं या कि मैं फ़िराक कहूं 
क़रीब तो है तू लेकिन मैं छु न पाऊ तुझे 
सियाह ज़र्रा हू 'असलम 'ये चाँद सुरज  सा 
मैं जगमगा के भला किस तरह दिखाऊ तुझे 


-असलम मीर